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अमित प्रेमशंकर

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अमित प्रेमशंकर

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हम इंकलाब गाएंगे

हम इंकलाब गाएंगे

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इतिहास नया लिखेंगे

एक गीत नया गाएंगे

सीने में ज्वाला भर के

हम इंकलाब गाएंगे

हम इंकलाब गाएंगे।।

माटी से तिलक लगा के

अब सर पे कफ़न सज़ा के

सरहद पे बिगुल बजा के

हम इंकलाब गाएंगे

हम इंकलाब गाएंगे।।

जयघोष विजय का जगा के

अब कुछ करेंगे रण में

दुश्मन को मज़ा चखा के

हम इंकलाब गाएंगे।

हम इंकलाब गाएंगे।।

शीश अपना बलि चढ़ा के

नदिया लहू का बहा के

भारत की लाज बचा के

हम इंकलाब गाएंगे

हम इंकलाब गाएंगे।।



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