हाथ वही जिसकी उंगली...
हाथ वही जिसकी उंगली...
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सने हुए हैं हाथ सभी के, कहां सान कर लाए,
किया कौन सा काम, कहां से इतना कीचड़ पाए ?
लगता है कि उन्होंने कोई नाली साफ करी है,
नगरपालिका ने दस्ताने शायद नहीं दिलाए ।
इक्कीसवीं सदी में भी क्यों ऐसी रीत बची है,
कौन देश के वासी हैं, वे किस माँ के हैं जाए ?
मानव की गरिमा सवाल के घेरे में आती है,
मानव का मैला यदि कोई मानव से उठवाए ।
ऐसे भी हैं हाथ करोड़ों जिनको काम नहीं है,
आय नहीं इतनी कि पेट की आग रोज़ बुझ पाए ।
भोग रहे हैं सुख सुविधाएँ वे जो सारे जग की,
थोड़े से हैं लोग जिन्होंने कभी न हाथ चलाए ।
हाथों का है खेल हाथ में जादू भी होता है,
हाथ वही जिसकी उंगली दुनिया को नाच नचाए ।