STORYMIRROR

राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Others

4  

राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Others

हारिल की लकड़ी

हारिल की लकड़ी

1 min
640

खिड़की की आंखों में जबसे, उड़ती धूल पड़ी ।

सम्मुख के दृश्यों की तबसे, हालत है बिगड़ी ।।


पछुआ थी चालाक बहुत, आई पहुनाई ।

पुरवाई भोली-भाली कुछ समझ न पाई ।

पछुआ ने पुरवा की ले ली, सिर की भी पगड़ी...।।


कुदरत के सारे विभाग, जबसे हैं भ्रष्ट हुए ।

हवा और पानी के दामों, ने आकाश छुए ।

सूरज के जलने बुझने की, फीस बहुत तगड़ी ...।।


तोता-मैना के सम्बन्धों में भी गाँठ पड़ी ।

कौवे के कहने पर मैना घर में खूब लड़ी ।

हारिल की ही बैरन है अब, हारिल की लकड़ी... ।।



Rate this content
Log in