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Dr Pragya Kaushik

Others

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Dr Pragya Kaushik

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हां! ठूंठ हूं मैं

हां! ठूंठ हूं मैं

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किसी की हूक तो 

किसी की हंसी की 

फरियाद हूं मैं

बदलते वक्त में ,मौसम 

के सभी रंग की

याद भी हूं मैं


मैंने तो देखें हैं

बदलते लोग 

और उनके बदलते रंग भी 

फिजा के अब्र में समाये 

ये रंग ,बेरंग तो हुए 

पर बैरंग नहीं


मेरे अस्तित्व से 

बेखबर ये लोग

करते रहे यूंही 

नजरअंदाज मुझे

पर उम्मीद को 

मेरी कोई रोक तो नहीं


सड़क किनारे 

अब भी अटल हूं मैं

यादो के निशान 

मुझ पर बाकी हैं सभी

मल्लकियत मेरी इन पर

बेवजह तो नहीं 


हां! मगरूर हूं मैं

एक धरोहर सा गुरूर हूं मैं 

क्योंकि झुका नहीं मैं

वक्त के सितम से

बहारें आएगी फिर से

इस पर कदाचित 

शंकित नहीं मैं


हां! ठूंठ हूं मैं



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