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Dipti Agarwal

Others

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Dipti Agarwal

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गूंज- समुन्दर किनारे

गूंज- समुन्दर किनारे

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है अगर आंसुओं के गिरेबान में झांकने का ज़ज़्बा तुझमें ,

तो  किसी वीरान समुन्दर किनारे से

मुट्ठी  भर गीली सीली रेत ले आना, 

फैलाके उसे नरम कागज़ पे करीब जाके  

उसे  सुनने की कोशिश करना, 

कितने ही दबे, बुझे, घुले, टूटे, बहे एहसास ज़ोर ज़ोर से चीख रहे होंगे उन में से, 

कभी किसी नन्हे हाथों ने यूहीं बेबाक शानदारकिले तराशे थे इनमें , 

पर बसर होने से पहले ही लहरें चुरा ले गयी उसे।


उन छोटी हथेलियों से पार हुए कुछ नमकीन आंसूं छुपे है इसमें, 

जुबां पे एक परत रख के देखो,  

उन हताश आसुओं का स्वाद आज भी मुकम्मल है उसमें।


बड़ी शिद्दत से कुछ मोहब्बत के मारों ने 

अपने प्यार को गूंधवा देना चाहा इसमें, 

लेके पतली टहनी के टुकड़े घंटो 

आड़ी टेढ़ी  दिल की तस्वीर बनाये, 

और फिर अतरंगी से नामों से उसमें 

अपने प्यार का रंग भरा, 

तस्सली से देखने भर की मोहलत भी 

इज़्ज़ाद नहीं  हुई उन्हें, 

और वह नाम लहरों में खो गए कहीं, 

देखना गौर  से थोड़ा कुछ टूटे अक्षर आज भीउबासी ले उठ निकलेंगे इस रेत  से।


गुजरे हुए लम्हों के अनगिनत पत्ते , कुछ बुझी सुलगती यादों का धुआं, 

सिसकते दम  तोड़ते ख्वाबों तले  छुपे 

आंसुओं के टिप्पे, 

हर ज़ज़्ब उन सिली सी  परतों से मुँह बाहर निकाले झाँक रहा है, 

अब शायद  इस सच से रूबरू हुए कि समुन्दर की रेत हर वक़्त सीली ही क्यों रहती है।



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