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Bhavna Thaker

Others

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Bhavna Thaker

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गुनगुनाते कश्मीर

गुनगुनाते कश्मीर

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भारत की मांग का टिका है कश्मीर

हम सबका चहिता है,

रक्तरंजित भूमि शर्मसार थी अपने

ही घर में बेघर थी

नासूर सा चुभता था काँटा बाग ए बहार

सी कश्मीर को

जड़ से उखाड़ने वाले तेरा शुक्रिया 

जन्नत थी जाहिलों के हाथ, रोता था

रोम रोम


हर फूल आज नम आँखों से ख़ुशियाँ

मनाते खिलखिला रहा है

हिमाच्छादित पर्वत ऊँचे खुली साँसे

तरसते

बाँहे पसारे आज सबको बुलाते धाराएँ

कुछ हट गई सर से 

धवल सुरीला नाद बहाते शीत समीर

संग नाच रहे है


हक अपने स्वर्ग पे पाकर हर नर नार

के उर में बहती फुहार ख़ुशियों की 

स्वर्ग से सुंदर रचना ईश की आधी

अधूरी लगती थी

पंडितों के हक की ज़मीन दर्द से

तड़पती रोती थी


डल सरोवर सराबोर सा शांत 

अडोल पड़ा था

लहरों में आवेग उभरता आज थनगन

नाच रहा है

वादियों में चिनार के कुछ पत्तें बिलबिलाते 

सैनिकों के खून से लथपथ इधर-उधर

मंडराते


बँधे हाथ अब मुक्त हुए सैनिकों को के

सर से उतर गए हर बंधन,

खैर नहीं अब दुश्मन तेरी, बेड़ियाँ खुल

गई है


हल्की-सी एक साँस भरकर आज़ादी की

लज्जत लेते हर घाटी हर मंज़र आज

जश्न मना रहा है, रोती हुई विधवा का

मानो शृंगार आज हुआ है

वजूद अपना वापस पा कर सालों से एक

रुके हुए फैसले पे इतराता कश्मीर

आज गुनगुना रहा है।।



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