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गुमान था...

गुमान था...

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गुमान था

ग़लत निर्णय नहीं लूँगा

कभी अपने जीवन में...

हक़ीकत है कि

ज़िंदगी के चौसर में

बिछी बिसात पर

मैंने हर बार

ग़लत गोटियाँ ही खेलीं

 

गुमान था 

जिसको स्पर्श करूँगा

सोना बना दूँगा

ज्यों होऊँ कोई पारस...

हक़ीकत है कि

जीवन के किसी घाट पर

पड़ा हूँ अलक्षित स्वयं ही

राह में इधर-उधर

ठुकराए जाते

किसी मामूली पत्थर सा

 

गुमान था कि

विश्वविजय करूँगा

सिकंदर की भाँति

और नाप लूँगा

समस्त लोकों को

अपने तीन पगों में

किसी वामन सा

हक़ीकत है कि

जोड़ नहीं पा रहा हूँ

अपने ही वज़ूद के

बिखरे हिस्सों को

जाने कितने जन्मों से

 

गुमान था

कितना कुछ कर गुज़रूँगा

इस जीवन में

हक़ीकत है

कितना कुछ रह जाएगा

करने को

इस जीवन में। 


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