गुफ़्तगू
गुफ़्तगू
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ये जो शायरी हम लिखते हैं
तुमसे हजारों अधूरी दास्तां कहते हैंl
समझते तो तुम हो नहीं
मगर फिर भी हम यही गुफ़्तगू बार-बार करते हैं।।