ग़ज़ल
ग़ज़ल
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मैं पल पल तेरी फ़िक्र करती रही
हर पल पल तुझे याद करती रही ;
मैं तुझ पर कवितायेँ गढ़ती रही
तू पढ़कर भी कभी रोया ही नहीं ;
मैं तेरे इश्क़ में हीर बनती रही
फिर तू क्यों कभी राँझा हुआ नहीं ;
मैं हिज़्र में जमकर झील होती रही
पर तू कभी सूरज बनकर ऊगा नहीं ;
तेरे दीदार को ये ऑंखें तरसती रही ;
तेरी आँखों में याद मेरी चस्पा नहीं रही !
