गीत
गीत
खेतों की मेढ़ और बरगद की छांव,
कैसा प्यारा लगे है अपना गाँव,
भंवरे की गुनगुन हैं, पयाल की रुनझुन
झिगुर की सुनसुन हैं, बेलों की झुनझुन
इठलाती नदिया में कठिया की नाव
कैसा प्यारा---
गायों की घंटी और गोधूलि बेला,
हाट बाज़ार में सज गया मेला
कानू चला रहा चाय का ठेला
कबड्डी और गिल्ली का तगड़ा हैं खेला
बूढ़े चाचा की मूछों पे ताव
कैसा प्यारा----
लस्सी और गुड़ संग बाजरे की रोटी,
सब मिल के खेले सोलह हाथ गोटी
गेहूँ की बाली भी हो गई है पोठी,
मुन्नी की बिल्ली भी हो गई है मोटी
नीम और पीपल की ठंडी है छांव
कैसा प्यारा----
गाँव की भाषा कितनी है भोली,
मीठी है कितनी प्यार की बोली,
गोरी के माथे पे लाल है रोली,
होली के गीत और फागुन की टोली
नोटंकी होती हैं थिरकते हैं पाँव
कैसा प्यारा---
