घर या रास्ते
घर या रास्ते
मैं यह करुं वो करुं, ऐसे रहूं या वैसे रहूं
यह राह चुनुं या वो, यह पढूं या वो पढूं
इस संग खेलूं या उस संग झगडूं
इसे छोड़ूं या उसे पकड़ लूं
उसका ही घर उसके ही रास्ते
उसके अनुरूप उसके ही वास्ते
अबोध-सुबोध उत्कंठित होते
ममतामयी बाहों में लौटते
बैठे बिठाए घूमते घूमाते
जानते बूझते पूछते पूछाते
आंचल में लिपटे लिपटाते
अपनी ही भाषा गढ़ते गढ़ाते
सब समझ कर ही समझते
मासूमियत से कहते न थकते
कुदरती नज़ारे हों या गगनचुंबी इमारतें
डांट-डपट या शरारती बातें
भूलोगे तो नहीं बचपन के रास्ते
बचपन की तरह बचपन के वास्ते
बोलो बोलो हो न साथ? घर या रास्ते
चाहे जो भी हो जैसे भी हों रास्ते
बन्धन बंधने से ही बंध पाते
घर हों या मीलों लम्बे हों रास्ते।