ग़ज़ल 5
ग़ज़ल 5
हमने बहते दरिया में भी कितने बंजर देखे हैं ।
और कभी सूनी आँखों में लाख समन्दर देखे हैं ।।
किसपे भला भरोसा करिये ,किससे दिल की बात कहें ?
झूठे और फरेबी जालिम , घर में अक्सर देखे हैं ।
लानत ठोकर ताने धक्के, उनसे पूँछो दर्द कभी ;
जिन बूढ़ी आँखों ने घर में , ऐसे मंजर देखे हैं ।
बातों के बेबाक सिकंदर, धोके से दिल छल जाते ;
कहो भला कितनो ने अक्सर, ऐसे कायर देखे हैं ।
दुश्मन से क्या खौफ ज़माने, ने ऐसा इतिहास लिखा ;
जब अपनों ने अपनों के ही, हाथ में खंजर देखे हैं ।
