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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

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ग़ज़ल 5

ग़ज़ल 5

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हमने बहते दरिया में भी कितने बंजर देखे हैं ।

और कभी सूनी आँखों में लाख समन्दर देखे हैं ।।


किसपे भला भरोसा करिये ,किससे दिल की बात कहें ?

झूठे और फरेबी जालिम , घर में अक्सर देखे हैं ।


लानत ठोकर ताने धक्के, उनसे पूँछो दर्द कभी ;

जिन बूढ़ी आँखों ने घर में , ऐसे मंजर देखे हैं ।


बातों के बेबाक सिकंदर, धोके से दिल छल जाते ;

कहो भला कितनो ने अक्सर, ऐसे कायर देखे हैं ।


दुश्मन से क्या खौफ ज़माने, ने ऐसा इतिहास लिखा ;

जब अपनों ने अपनों के ही, हाथ में खंजर देखे हैं ।


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