गांव
गांव
गांव सुन्दर मनोहर सृजन श्रृष्टि के,
है हरीतिमा सरसता समेटे हुए ।
बाग उपवन सभी लहलहाते यहां,
गांव अपनत्व को है समेटे हुए ।।
कूकती कोकिला नाचता मोर है,
प्रिय विरह मे पपीहा मचलते हुए।
रात मे झींगुर की झनक को सुनो,
देखिए नभ मे जुगनू चमकते हुए।।
हो कबड्डी कहीं तास हैं हो रहे,
वृक्ष पर बाल खेले उछलते हुए।
गा रही गीत मृदु नारियां है यहां,
लाज वश अपने मुँह को लपेटे हुए।।
प्रात उठ देके चारा पशू को स्वयं,
लादकर बोझ को खेत जाते हुए ।
करके मेहनत बहाते पसीना अथक,
स्वयं तन पर है गुदडी लपेटे हुए ।।
देखिए इनके त्योहार मेले अजब,
भाव अपनत्व का उर मे धारण किए।
पूजते ग्राम देवो को हो वो मगन,
प्रेम से सबको खुद मे समेटे हुए ।।
