गांव की मूरत
गांव की मूरत
गांव की मेरी मूरत है वह,
संस्कृति से खूबसूरत है वह,
चुप चुप बातें करने से,
वह जो तस्वीर मेरे ख्वाबों में भटके,
दर-दर जाएं दर-दर भटके,
उसके लिए करे सब कुछ हटके,
लगाकर जान बाजी से,
हम अपनी नादानियों में ही अटके।
कदम-कदम पर टूटे वादें,
कदम-कदम पर टूटे यादें,
फ़िज़ूल हिम्मत करने से,
देंगे साथ तेरा हर वक्त डटके,
मैं दीपक तू बाती बनकर,
बेमतलब के साथी बनकर,
बेहतर चाहत करने से,
मानजा दिलबर दें ना झटकें।
तेरी सादगी पर मारा मैं तो,
बिना तेरे अब हारा मैं तो,
नाकामयाब कोशिश करने से,
देना मुझको यूं जुदाई के चटके।
अदब मेरा तू है मेरी संस्कृति,
क्या खता है जो, तू मुझसे रूठी,
तेरे घायल करने से,
खातिर उसके हम फांसी पर लटके।