गाँव घूम कर आया हूँ
गाँव घूम कर आया हूँ
गाँव तुम जाते हो तो लगता है,
जैसे मैं गाँव घूम कर आया हूँ।
हरे भरे खेत और गाँव के मिट्टी को
जैसे चूम कर आया हूँ।
चूल्हे पर बनी गरम रोटियाँ,
सिलबट्टे में पीसी ताजी धनिया,
टमाटर की चटनी के साथ खाया हूँ।
भूख और मन दोनों तृप्त कर आया हूँ।
बचपन में जिस पेड़ के छाँव में खेला,
ओ बरगद का पेड़ आज भी है।
सौंधी-सौंधी मिट्टी की खुशबु और
शुद्ध हवा में कुछ पल जी कर आया हूँ ।
कुछ नए और अपने खास
दोस्तों से मिलकर,
पुरानी यादें फिर ताज़ा कर आया हूँ।
<p>टपरी से अदरक वाली चाय पी कर आया हूँ।
दिल ख़ाली-ख़ाली सा था कब से
और उनसे मिलने को मन बेचैन,
वर्षों बाद अपनो से मिलकर आया हूँ।
ख़ुशियों का पिटारा साथ लाया हूँ।
घर के आँगन में लगाए थे जो
पेड़ अब बड़े हो कर फलने लगे हैं,
कुछ नीबू ,कुछ आम ,कुछ अनार
मीठे अमरूद तोड़ कर लाया हूँ।
लौटते वक्त गाँव का स्कूल देखा
बचपन की शरारतें याद कर आँख भर आया।
हैं हक़ीक़त लेकिन लगता सपनो सा
छोड़कर सब फिर व्यस्त जमाने में लौट आया हूँ।।