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Vikram Singh Negi 'Kamal'

Others

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Vikram Singh Negi 'Kamal'

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एक शिक्षक की कलम से

एक शिक्षक की कलम से

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मैं गया क्लास में,

देखा तो बहुत था शोर ।

सबको लगाई फटकार,

अफरा तफरी से खाली न अब कोई छोर ।।


कोई सीधा, कोई टेढ़ा, कोई नीचे देखे,

सारे के सारे थे खड़े सब ओर ।

आँखें दिखाई नज़रें घुमाई.,

कुछ छिपी नज़रों से देखे जैसे चोर ।।


सिट डाऊन की कमाण्ड हुई तो,

बेचारे बैठकर होने लगे बोर ।

गप्पे लड़ा लो अगर भाई.,

फिर देखो होने लगेगा वही शोर ।।


मैंने पूछा एक प्रश्न,

ज़रा इसका उत्तर तो बताओ ।

एक बोला सरजी आज नहीं,

आज तो हमें न पढ़ाओ ।।


दिमाग में कैसे लायें जिनको,

ऐसी थ्योरमों में न उलझाओ ।

पता नहीं क्या गिवन है,

क्या प्रूव्ड है करना मत समझाओ ।।


आज पढ़ने का मूड नहीं है,

ऐसे सवालों से न पकाओ ।

मैं बोला क्या है इच्छा.,

क्या करोगे ये तो बतलाओ ।।


वे बोले बस पढ़ना नहीं

ऐसा करो कोई गेम खिलवाओ ।

मैं बोला चलो ठीक है.,

अच्छा दो ग्रुप में बँट जाओ ।।


हर ग्रुप से एक की बारी

एक एक करके बोर्ड पे आओ ।

एक पूछेगा प्रश्न कोई,

दूसरा उसपे अक्ल लगाओ ।।


जिस ग्रुप ने सारे हल किये

वो तो भई खेलने जाओ ।

जिसे हार हो मंज़ूर.,

वो सारे कल पैरेन्ट्स बुलाओ ।।


सुनना था बस इतना,

बोले ये भी कोई गेम है ।

घुमा फिरा के वही लाते हो.,

सवाल करने हैं खेल तो नेम है ।।


बहुत क्लेवर हो सरजी

बड़ा ग़जब आपका फेम है ।

आप पढ़ा ही लो उससे अच्छा.,

इसमें और उसमें सब सेम है ।।


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