एक शिक्षक की कलम से
एक शिक्षक की कलम से
मैं गया क्लास में,
देखा तो बहुत था शोर ।
सबको लगाई फटकार,
अफरा तफरी से खाली न अब कोई छोर ।।
कोई सीधा, कोई टेढ़ा, कोई नीचे देखे,
सारे के सारे थे खड़े सब ओर ।
आँखें दिखाई नज़रें घुमाई.,
कुछ छिपी नज़रों से देखे जैसे चोर ।।
सिट डाऊन की कमाण्ड हुई तो,
बेचारे बैठकर होने लगे बोर ।
गप्पे लड़ा लो अगर भाई.,
फिर देखो होने लगेगा वही शोर ।।
मैंने पूछा एक प्रश्न,
ज़रा इसका उत्तर तो बताओ ।
एक बोला सरजी आज नहीं,
आज तो हमें न पढ़ाओ ।।
दिमाग में कैसे लायें जिनको,
ऐसी थ्योरमों में न उलझाओ ।
पता नहीं क्या गिवन है,
क्या प्रूव्ड है करना मत समझाओ ।।
आज पढ़ने का मूड नहीं है,
ऐसे सवालों से न पकाओ ।
मैं बोला क्या है इच्छा.,
क्या करोगे ये तो बतलाओ ।।
वे बोले बस पढ़ना नहीं
ऐसा करो कोई गेम खिलवाओ ।
मैं बोला चलो ठीक है.,
अच्छा दो ग्रुप में बँट जाओ ।।
हर ग्रुप से एक की बारी
एक एक करके बोर्ड पे आओ ।
एक पूछेगा प्रश्न कोई,
दूसरा उसपे अक्ल लगाओ ।।
जिस ग्रुप ने सारे हल किये
वो तो भई खेलने जाओ ।
जिसे हार हो मंज़ूर.,
वो सारे कल पैरेन्ट्स बुलाओ ।।
सुनना था बस इतना,
बोले ये भी कोई गेम है ।
घुमा फिरा के वही लाते हो.,
सवाल करने हैं खेल तो नेम है ।।
बहुत क्लेवर हो सरजी
बड़ा ग़जब आपका फेम है ।
आप पढ़ा ही लो उससे अच्छा.,
इसमें और उसमें सब सेम है ।।