एक शाम
एक शाम
एक शाम
स्कूटी से
ऑफिस से लौटते समय
सावन की बारिश ने
घेर लिया
भीगने से बचने के लिए
एक छोटे छज्जे के नीचे
आश्रय लिया...
कुछ पल में ही
बहुत सारे लोग इकट्ठे हो गये थे
बारिश की डर से
भीगने से बचने के लिए
एक जन दूसरे को
जगह देते हुए...
कुछ लोगों के सर पर
पागड़ी था
कुछ लोगों के गाल में
दाढ़ी था
कुछ लोग धोती
पहने थे
कुछ लोग केवल
कौपीन में थे...
यह पूरा - पूरी सत्य था
कि, वहाँ हिन्दू भी थे
और मुस्लमान भी
सिख भी, ईसाई भी
डोम भी थे
और कुम्हार भी
नाई भी थे और चमार भी...
पर बारिश से बचते हुए
उनके मन में
जात-पात का विचार
बिलकुल भी नहीं था
धर्म की सख्त दिवार को
तोड़ दिया था
और छुआछूत की
बीमारी को
शरीर से निकाल फेंका था...
बहुत दिनों के बाद
उस सुनहरी शाम की बेला
मुझे बहुत अच्छा लगा था...
