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Jyoti Agnihotri

Others

5.0  

Jyoti Agnihotri

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द्वन्द

द्वन्द

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सूर्य-चंद्र कब संग दिखते है,

दिख भी जाए तो कब,

इनके फासले मिटते है।


दुर्लभ प्रेम-विस्तार सदियों में होते है,

जिनके साक्ष्य सूर्य-चन्द्र को ही प्राप्त होते है।

और फिर सहस्त्राब्दियों तक

तारीख़ से बयान होते है।


प्रेम की पूर्णता भी

कब संयोग की दास है,

विरही राधा-कृष्ण की मूर्तियों में,

आज भी आस्था का वास है।


प्रेम तो विरह है वेदना है,

अद्वैत की सम्पूर्णता और

मानव मन की सुन्दर प्रेरणा है।


सूर्य-चंद्र में हुआ कब मेल है,

इनकी तो समकक्षता भी

अमावस्य-पूर्णिमा में झूलता ग्रहण है।

प्रेम भी बिम्ब आच्छादित

संयोग-वियोग का अदभुत मेल है।


सदियों ही से प्रेम पे,

कवियों ने लिखे बहुत से छन्द है,

किन्तु यथार्थ-भूमि पे ,

प्रेम और सांसारिकता में सदा ही से द्वन्द है।


किन्तु इतने पर भी,

ख़ूबसूरती देखिए इस प्रेम की,

कि ये सदा ही से

निश्छल-निष्कंटक-निर्द्वन्द है।


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