दस्तकारों के हाथों की कारीगरी
दस्तकारों के हाथों की कारीगरी
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दस्तकारों के हाथों की कारीगरी,
महीन रेशों पर बनारस की ज़री।
खजुराहों के सभी मंदिरों जैसी,
पत्थरों पे उकरी हुई जादूगरी।
जिन्होंने बे-जुबाँ को आवाज़ दी,
वो इक खामोश सी निगाह तेरी।
जयदेव के "गीत गोविंद" वाली,
शब्दों से बजती हो कहीं बांसुरी।
फिर उस पार की किसने सोची?
इस छोर लग जाए फसल हरी भरी।
