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Ritu Garg

Others

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Ritu Garg

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दर्प

दर्प

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दर्द आ जाए जीवन में,

तब वह कलुषित हो जाता है।

स्वयं का चेहरा भी ,

धीरे-धीरे धूमिल हो जाता है ।

दर्प कर क्या मिलेगा,

दोषों से परिपूर्ण होगा।

पर हितैषी कैसे बनेगा,

जब खुद को महान समझेगा ।

दर्प लेकर कभी न चलना,

स्नेह के बीज उगाना ।

पर दोषों को भी तुम ,

मुस्कुराकर भुलाना।

दर्प कर किसी को,

क्या कभी सम्मान मिला।

दूसरों के दुखों को दूर कर,

जग में नाम मिला।


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