दरक सिने में
दरक सिने में
महसूस होता आज कुछ फ़रक सा है
आईने के सिने में कोई दरक सा है
ऐ दिल बता उदास क्यों इतना है तू
दफ़न ज़ख्मों में दर्द का छलक सा है।
जो कभी थे अज़ीज़ जान से प्यारे
साँसों के आस पास एहसास सारे
आज क्यों लगता कुछ अलग सा है
दफ़्न ज़ख्मों में दर्द का छलक सा है।
प्यार था दुलार था,थी जो नज़दीकियां
छीन गयी क्यों पसरी ये खामोशियाँ
वक्त बेरहम या ग़मों का अलख सा है
दफ़न ज़ख्मों मे दर्द का छलक सा है।
खुशिय
ां बंटते थे तकलीफें छंटते थे
पल मुश्किल के भी सुकून बांटते थे
आज खुशियां अपनी लगे खटक सा है,
दफ़न ज़ख़्मों में दर्द का छलक सा है।
काहाँ गयी वो सुबह अफ़ताब की चमक
तितलियों की चहक कलियों की महक
सिमटी गमले में गुलिस्ताँ की सुबक सा है
दफ़न ज़ख़्मों में दर्द का छलक सा है।
चटक गयी जो कांच जोड़ना आसाँ नहीं
बिखरी तस्वीर की तंज पढ़ना आसाँ नहीं
डूबता सूरज का मुस्कान भी रुआंसा है,
दफ़्न ज़ख़्मों में दर्द का छलक सा है।