दर्द
दर्द
किसी को क्या पता
कितना दर्द छुपा मेरे सीने में ,
काबिल हुआ मैं कुछ हद तक
उस दर्द को छुपाने में ,
आखिर कुछ सफल हो ही गया
हर शख्स को हंसाने में।
कौन कहता है कि मर्द को,
कभी दर्द नहीं हो सकता ,
उसका फर्ज ही कुछ ऐसा है,
हर पल बयां नहीं कर सकता।
हर कोई रहे उससे संतुष्ट
उसके बस की बात नहीं ,
सभी अपनो को हर बात पर,
वो खुश नहीं रख सकता।
गर बयां कर दे वो दर्द,
कमजोर ही कहलाएगा,
आखिर अपना दर्द लेकर ही,
इस दुनिया से वो जाएगा।
आंसू भी ना दिख जाए ,
ऐसी कशमकश में वो रहता है,
परिवार की मजबूत नींव है,
इसी बात पर अडिग रहता है।
