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GUDDU MUNERI "Sikandrabadi"

Others

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GUDDU MUNERI "Sikandrabadi"

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दोस्तों के यादगार पल

दोस्तों के यादगार पल

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सालों पहली बात है

आ गई दोस्तों याद है

वो प्रगती मैदान वो मेरा जाना

वो किताबों का मेला वो तुम्हारा आना।


वो चित्रकारी का स्टाल

वो रंग-बिरंगे फूलों की सजावट

वो लटकते गुब्बारों के ढेर

वो मस्त रहना हमेशा याद है।


याद है हमें वो बूक फ़ेयर

की दीवानगी में जाना

वो किताबों की तह में जाना

वो किताबों के पन्ने पलटना

वो कवर का पेज दिखाना।


याद है हमें वो पल सारे

सफिक़ जी किताबों में मशगूल थे

मै एल्केमीस्ट में मशगूल था

सन्तोष जी पैंटींग निहार रहे थे

नीरज के हाथ में चार किताबे थी।


तुम दोस्त कम टीचर ज्यादा थे

मेरी बात को समझने वाले थे

कोई नहीं पढ़ता किसी का हाल

तुम मेरे हाल को जानने वाले थे।


वो मुन्शी प्रेमचंद का

'गबन' और 'मानसरोवर'

उपन्यास खरीदना

चलते चलते बात करना

याद आता है मुझे।


वो पहली बार किताबों

की खुशबुओं में आना

हजारो लेखकों की

किताबों का छाना।


याद है हमें

वो इरफान का खाना-पीना

वो ढेर सारी किताबों का लेना

याद है मुझे वो दिन

दोस्तों का दोस्तों के साथ रहना।


याद हमें वो पल सारे

बूक फेयर से लौटकर

पराठे वाली गली में जाना

शाही पराठे से भूख मिटाकर

वो केले की चटनी खाना।


याद है हमें वो पल सारे

मेट्रो में सफर की बाते

मैट्रो से जाना मैट्रो से आना

एक दुसरे का साथ निभाना।


वो खरीदी हुई किताबों का बोझ

बारी बारी से उठाना

घर आकर किताबों का मिलाना

ये तेरी ये मेरी जो चाहे ले जाना।


याद है हमें वो पल सारे

याद है हमे वो पल सारे

दोस्तो का दोस्तो के साथ रहना

याद है हमें।


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