दोहरा व्यवहार
दोहरा व्यवहार
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पहाड़ों की गोद से
निकलकर
चल देती हूं।
बहती ,चहकती ,कल कल करती
चीर देती हूं
चट्टानों के सीने
अपनी राह
खुद बना लेती हूँ
सागर से मिलने का वादा निभाने को
हर बाधा विपदा झेलती
किसी से न हारती
बढ़ती रहती
बहती रहती
चलती रहती
मगर धोखा खा जाती हूं
दोहरे व्यवहार से मनुष्य के
जो एक ओर माँ कहता है
मानता है देवी
सोचती हूं आशीर्वाद देती चलूं
मगर वह मुझे प्रदूषित करता
मेरी शरण मे आए जीवो का
सांस लेना दूभर करता।
प्लास्टिक कचरा गंदगी
कर देती मुझको बीमार
वाह मनुष्य!
ऐसी आवभगत ऐसा सत्कार!
मेरे संग दोहरा व्यवहार।।
