दिल्ली - १०
दिल्ली - १०
पहले जंगल, फिर शहर छोटे
वहां सादगी थी भरी, यहां दर्शन छोटे।
है देश की राजधानी, चौड़ी है सड़कें
अभिमान से भरे लोग, बात - बात पर भड़के।
काली रातें जगमगाती, बिजली की चकाचौंध से
चमक - धमक वाली ज़िन्दगी, जीते झूठी शान में।
सीधी साधी ज़िन्दगी तब तक जी रहा था
यहां के अनुसार जीना मुश्किल सा था।
सामान से भरा ट्रंक, दिमाग था उलझन में
भय व झिझक साथ पहुंचा अपने स्कूल दिल्ली १० में।
जात पात, अमीरी गरीबी का भेद भाव मिला ना यहां,
दिल्ली के अंदर, दिल्ली १० था एक अलग जहां।
देखी यहां हमने देश की असली शक्ति,
भिन्न प्रांत से लोग, अलग थी संस्कृति।
दिल्ली १० में अजब दुनिया थी बसती,
जहां गम था महंगा और खुशी सस्ती।
पढ़ाई व खेल कूद सहित बनाए दोस्त अनेक,
४१ साल बीते, पर रिश्ते हैं अभेद।
मिली बड़ी सीख हमें दिल्ली १० से,
चाहोगे तो खिले कमल कीचड़ में जैसे।
