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Praveen Gola

Others

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Praveen Gola

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दिल्लगी

दिल्लगी

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अजीब सी उलझन में, उलझ गई ये ज़िन्दगी,

मैं सुलझाना चाहूँ तब भी, ना सुलझे ये ज़िन्दगी|


हँसते हैं अब लोग मुझ पर, और देते हैं ताने,

रोज़ नई राह पकड़ने के, बनते नए अफसाने|


नई राहों के लिए ही तो, बनी है ये ज़िन्दगी,

एक राह... एक डगर, नहीं मिलती मुझे ऐसे खुशी|


ज़िन्दगी जीने का सबका, अपना एक अलग अंदाज,

कोई खुश रहे एक जगह, तो कोई छूना चाहे सारा आकाश|


ऐसी चाहत के लिए, मैं रोज़ करती दिल्लगी,

अजीब सी उलझन में, उलझ गई ये ज़िन्दगी||


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