दिल्लगी
दिल्लगी

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अजीब सी उलझन में, उलझ गई ये ज़िन्दगी,
मैं सुलझाना चाहूँ तब भी, ना सुलझे ये ज़िन्दगी|
हँसते हैं अब लोग मुझ पर, और देते हैं ताने,
रोज़ नई राह पकड़ने के, बनते नए अफसाने|
नई राहों के लिए ही तो, बनी है ये ज़िन्दगी,
एक राह... एक डगर, नहीं मिलती मुझे ऐसे खुशी|
ज़िन्दगी जीने का सबका, अपना एक अलग अंदाज,
कोई खुश रहे एक जगह, तो कोई छूना चाहे सारा आकाश|
ऐसी चाहत के लिए, मैं रोज़ करती दिल्लगी,
अजीब सी उलझन में, उलझ गई ये ज़िन्दगी||