डरपोक हूँ मैं
डरपोक हूँ मैं
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डरपोक हूँ मैं बहुत,
हाँ सही कहा आपने
दिन पर दिन और भी
डरपोक होती जा रही हूँ
पहले अजनबियों से भी
बेधड़क बतिया लेती थी
आगे बढ़ कर उनके लिये
कुछ कर गुज़रती थी सदा
अब कोई प्यार से भी बुलाए
तो घबरा जाती हूँ मैं
और दुत्कारे अगर तो
और भी डर जाती हूँ मैं।
क्यों इतना डर समा गया मुझमें?
जबकि इस दुनिया से कोई
मोह माया लालच भी नहीं
कुछ खोने का डर भी नहीं
सबकुछ खो चुकी हूं मैं जब
शायद अब पाने से ही डरती हूँ
हाँ सच, डरपोक हूँ बहुत मैं
मिलने मिलाने से भी अब डरती हूँ।
