डाल का पंछी
डाल का पंछी
तिनका तिनका मुंह में लेकर
उड़ान भरी बड़ी दूर उसने
सारा दिन उड़ते तिनका लेते
शाम बिताई डाल पर उसने।
सुबह उठकर देखा उसको तो
उस डाल पर वह होता नहीं था
सारा दिन उसकी राह देखती
लगता रात में सोता नहीं था।
जब शाम को अपने सामने मैंने
डाल पर आता उसको पाया
पंख में फंसाकर मुंह में लेकर
पूरा दिन उसने वहीं बिताया।
फिर सुबह जब देखा उसको
कितना सुंदर था घर बनाया
मैं तो सो गई रात भर
पर रात में उसने घर सजाया।
कुछ पल बाद सुंदर पक्षी ने
खुद को बड़ा सुकून था पाया
घर में बैठा उसे देख कर मैंने
खुद भी ख्वाबों का जाल बुनाया।
