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Minal Aggarwal

Others Children

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Minal Aggarwal

Others Children

दादी मां का थैला

दादी मां का थैला

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दादी मां, दादी मां 

इस थैले में तुम्हारे क्या?

इस थैली में मेरा अतीत 

मेरी दुनिया 

मेरी जिंदगी 

दादी मां ने मुस्कुराकर 

अपने चेहरे की झुर्रियों के बीच से 

झांककर अपनी प्यारी सी पोती को 

यह जवाब दिया 

दादी मां, दादी मां 

इसे खोलकर दिखाओ ना!

कोई सामान 

कोई गुब्बारा 

कोई खिलौना 

कोई बिछौना 

कोई झुनझुना हो मेरे खेलने 

के लिये तो उसे मुझे 

दे दो ना 

गुड़िया रानी 

दिखा दूंगी पर दूंगी तुम्हें 

कुछ नहीं क्योंकि 

यह सब मेरे बचपन की 

और जवानी की हैं

भीनी भीनी सुगंध देती 

कुछ यादें 

अपना खिलौना तुम्हें दिखा 

दूंगी 

चलो बहुत हुआ तो बस 

यहीं थोड़ी देर खेलने के लिए 

दे दूंगी पर 

शर्त यही कि जब मैं चाहूं

उसे मुझे लौटा देना 

कहीं मेरे हाथ से छीनकर न

मुझसे दूर भाग जाना 

मैं इनके बिना जीवित नहीं 

रह पाऊंगी बस 

इतना तुम समझ लेना 

दादी मां, दादी मां 

मैं तुमसे वादा करती हूं 

तुम जैसा चाहोगी, मैं ठीक वैसा

ही करूंगी पर

अब देर न लगाओ 

अपना थैला खोलो और 

एक एक करके जो सामान 

दिखाना चाहती हो 

उसे दिखाओ 

दादी मां को अपनी पोती पर 

विश्वास हो गया 

उनका उसके प्रति प्यार 

उमड़कर दिल से बाहर निकला और 

एक बादल सा ही बरस गया 

सबसे पहले दिखाई 

अपने बचपन की कुछ 

तस्वीरें 

इस पर पोती बोली 

दादी मां, यह तो तुम नहीं 

मैं हूं 

तुम्हारी शक्ल मुझसे कितनी 

मिलती है 

दादी मां बोली अरे मिलेगी नहीं 

तू मेरी पोती जो है 

दादी मां ने फिर दादा की 

तस्वीर दिखाई फिर 

अपने बच्चों की फिर 

परिवार के सारे सदस्यों की 

श्वेत श्याम तस्वीरें थी पर

उनके रंग बड़े पक्के थे 

दिल पर सीधे एक तीर से लगते थे और 

चिर स्थाई तौर पर 

अपनी एक छाप छोड़ते थे 

दादी मां ने फिर करी

सिक्कों की बारिश 

बचपन में उन्हें 

सिक्के जमा करने का भी 

शौक था 

दादी मां ने फिर दिखाये

बहुत सारे जमा किये हुए 

डाक टिकट भी फिर

बच्चों की कहानियों की 

ढेर सारी किताबें 

अपनी एक टूटी फूटी 

गुड़िया 

अपने कुछ सूती तो कुछ

ऊनी कपड़े

अपनी माताजी और 

पिताजी की 

अपने भाइयों और बहनों की 

तस्वीरें 

अपनी कुछ सहेलियों की भी 

तस्वीरें 

उनके खत

अपनी पेंसिल, रबड़,

पेन आदि

दादी मां के थैले में 

बहुत कुछ था पर 

सब कुछ पुराना 

इस आधुनिकता के युग में तो 

इसमें से कोई सामान भी 

काम नहीं आ सकता 

इससे बेहतर खिलौने 

और सामान तो मेरे पास है 

दादी मां ने अपना थैला 

खोलकर अपना सामान 

जैसे थे वह सब उनके दिल 

के टुकड़े को अपनी पोती के 

सामने बिछा दिया था 

वह बहुत खुश दिखाई पड़ रही थीं

आंखें फाड़कर उसकी तरफ देखकर 

बोली चाहिये कुछ 

कौन से खिलौने से

खेलेगी

पोती थोड़ी हैरान परेशान थी

कि दादी मां भगवान जाने

अपने थैले में इन टूटी फूटी

बिना काम की चीजों को 

लेकर 

अपने सीने से चिपकाये चिपकाये

फिरती हैं

कुछ तो निकला नहीं बाहर 

इस थैले में से जब यह 

खुला 

एक रहस्य पर से पर्दा तो हटा पर 

पोती थी कि उसके गले 

कुछ न उतरा 

उसे कुछ नहीं भाया 

दादी मां की मन स्थिति को 

उसका बाल मन अभी 

शायद कुछ समझ नहीं पाया था।


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