चव्वनी की मेहरबानी
चव्वनी की मेहरबानी

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सवाल तो बहुत किये थे मैंने दुनिया से।
मगर मुनासीब जवाब नहीं मिला।
हर सवाल पर लोगों का रवैया
कुछ बेपरवाह जैसा मिला।
मैं ही खामख्वाह बोझ उठाये चला।
दूसरों का जनाजा अपने कंधे पे उठाके चला।
चव्वनी की मेहरबानी और बंदे रुपये का नखरा।
समझ न पाया दुनिया में कौन झूठा, कौन खरा।
अपने हिसाब से चलने में ही समझदारी है।
बताओ, किसको उलझाने की तैयारी है।