चुप हूँ
चुप हूँ
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नही की दुनिया तेरे इशारे नहीं समझता
समझ तो लेता हूँ, मगर चुप हूँ
नही की दुनिया के दरिया को नहीं समझता
किनारे खड़ा सब देखता हूँ, मगर चुप हूँ
किधर से निकलगा चाँद और कब चमकेगे सितारे
यह समझ लेता हूँ, मगर चुप हूँ
दुनिया को लगता है मुझे उसकी खबर नही
खबर तो मुझे सबकी है. मगर चुप हूँ
कौन किसके आगे पीछे, दाएँ-बाएँ घूमता है
सब पता है, मगर चुप हूँ
कभी सोचता सबको सच बता दूँ
लेकिन क्या फायदा इस बात का
ये सोचकर चुप हूँ।
