छुट्टियाँ
छुट्टियाँ
मुझे भाती थी गर्मी की छुट्टी
हो जाती थी स्कूल से कुट्टी।
नानी के घर रहने जाते थे
आम लीची मन भर खाते थे।
नानी मेरी सबसे प्यारी है
सुनाती कहानियाँ बहुत सारी है।
नित नये मूल्यवान पाठ पढ़ाती थी
जिंदगी के सब रंग समझाती थी।
उनके जैसा दूसरा ना कोई
भर देती जीवन मेें रोशनी नयी।
नाना मेरे सबसे अच्छे हैं
मेरे संग बन जाते बच्चे हैं।
रोज मुझे घुमाकर लाते थे
नए-नए तोहफे दिलवाते थे।
मेरी मौसी का क्या कहना
लाखों में मेरी माँ की बहना।
मेरे सब राज थी छुपाती वो
सबकी डांट से मुझे बचाती वो।
मामा मेरे कसरत करवाते
पूरा सब होमवर्क करवाते।
पढ़ाई की कीमत समझाते
इंसानियत का पाठ पढ़ाते।
इसी तरह बीत जाती थी सारी
गर्मी की होती थी छुट्टियाँ निराली।
वक्त कितना बदल गया अब
यादें रह गई बीत गया वो मौसम।
कहने को हर दिन है अवकाश
कोई नहीं पर किसी के पास।
स्कूलों से हुई यह कैसी कुट्टी
और नहीं चाहिए अब ऐसी छुट्टी।
