छिप के बैठी है
छिप के बैठी है
ज़रा सा भी जो तू बहका तो आफत छिप के बैठी है
हर इक पागल के मस्तक में जराफ़त छिप के बैठी है
जिसके चेहरे पे दिखती है मुसलसल बदतमीज़ी
उसी के दिल में तो असली सराफ़त छिप के बैठी है
तराशे पत्थरों को देख, आ जाती लचक उनमें
सख़्त पत्थर के अंदर भी लताफ़त छिप के बैठी है
तेरे सदके में आया हुस्न मत इतरा इस पे
उस हसीं चांद में भी तो कसाफ़त छिप के बैठी है
मुझे लगता है डर, ऐसे क़रीबी मत बढ़ा मुझसे
क़रीबी के ही आँचल में मसाफ़त छिप के बैठी है
सियासत की गली में 'देव' मत जाया करो अब
इन्ही गलियों के कोनों में ख़िलाफ़त छिप के बैठी है।।
==================================
जराफ़त - बुध्दि
मुसलसल - पूरी तरह से
लताफ़त - कोमलता
सदका - भाग्य
कसाफ़त - ग्रहण
मसाफ़त - दूरी
____________________________________________