STORYMIRROR

Devendra Singh

Others

4  

Devendra Singh

Others

छिप के बैठी है

छिप के बैठी है

1 min
162

ज़रा सा भी जो तू बहका तो आफत छिप के बैठी है

हर इक पागल के मस्तक में जराफ़त छिप के बैठी है


जिसके  चेहरे  पे  दिखती  है  मुसलसल  बदतमीज़ी

उसी  के दिल में तो असली सराफ़त छिप  के बैठी है


तराशे  पत्थरों  को  देख,  आ  जाती  लचक  उनमें

सख़्त पत्थर के  अंदर भी  लताफ़त छिप के  बैठी  है


तेरे   सदके   में   आया  हुस्न   मत   इतरा  इस  पे

उस  हसीं  चांद  में  भी  तो  कसाफ़त छिप के बैठी है


मुझे  लगता  है  डर,  ऐसे  क़रीबी  मत  बढ़ा  मुझसे

क़रीबी  के  ही  आँचल  में मसाफ़त  छिप के बैठी है


सियासत  की  गली  में  'देव'  मत  जाया  करो  अब

इन्ही  गलियों  के  कोनों में ख़िलाफ़त छिप के बैठी है।।

==================================

जराफ़त - बुध्दि

मुसलसल - पूरी तरह से

लताफ़त - कोमलता

सदका - भाग्य

कसाफ़त - ग्रहण

मसाफ़त - दूरी

____________________________________________


Rate this content
Log in