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Dr. Anu Somayajula

Others

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Dr. Anu Somayajula

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चेतना

चेतना

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इंद्रनील सा प्रकाश स्तंभ

उतर आया धरती पर

या टूटकर गिरा आसमान का चमकीला टुकड़ा कोई

या सिमट आया सागर का विस्तार

चेतना मानो पिघलती रही 

तिल तिल चुकती रही

विलीन होती रही अंतरिक्ष में 

नए सिरे से पहचान ढूंढती


अनगिनत उजले, अरुणिम प्रकाश पिंड

घूमते निर्बाध अंतरिक्ष में

थामते बिखरते अस्तित्व के टुकड़ों को

गढ़ते चेतना के नित नए रूप

सहेजते जीवन को

सुदूर, अनोखे विश्र्व के आंगन में

कि टूटने, बिखरने, गढ़ने, संवरने का चक्र

अविराम चलता रहे

जीवन स्पंदित होता रहे विश्र्व के आंगन में।


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