बसंत आता, यौवन छाता
बसंत आता, यौवन छाता
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सर्दी टली,
बसंत ने दस्तक दी,
हल्की हल्की धूप,
भरे शरीर में जोश,
मन हो जाए विचलित,
देख प्राकृति के रंग भिन्न भिन्न।
हो जैसे प्राकृति का उद्धार,
लहू में हो प्रेम का संचार,
खेतों में पीली पीली
सरसों लहराए,
जैसे प्रेम के नशे में
गोरी बहकी जाए,
न मन पे संयम,
न चाल पे ठहर,
हवा का झोंका जैसे ही आए,
वातावरण में प्रेम का
संगीत छेड़ जाए,
बदन उस पे नाचता जाए।
ऐसा मनमोहक दृश्य,
जमीं पे स्वर्ग का एहसास कराए।