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Dr. Madhukar Rao Larokar

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बरखा रानी

बरखा रानी

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रे कारे घने बदरवा

अभी ना बरसों,हमारे अंगनवा।

जब बिदेस से,आवें सजनवा

तुम जोर लगाके बरसो ,हमारे जीवनवा।।

याद आवें हैं, पी की जबर

अब मिलन की, चाह है बढ़ी।

बारिश के मौसम, में भीगे

तन मन जब ,साथ हों हम हर घड़ी।।

बादल तुम, देखना कहीं

तूफां बनकर ना,बरसो कहीं।

किसान की खेती, गरीब की झोपड़ी

मासूमों की जिंदगी से,ना खेलना कहीं। ।

अपनों की यादें, उनके वादे

ना भिगोकर मिटा,देना बारिश में।

इंसा की जिंदगी में, रहते बड़े

मायने,बादल ना भूलना,बारिश में। ।

यादें ही तो, साथ रहती

समय तो बीत, ही जाता है।

बादल तू भी याद में कहीं

बरखा तो नहीं, बहाता है। ।

कभी यादें गहरी आयें तो

आँख भी मेह,बन जाता है।

किसी मज़लूम की,आह निकले

तो बादल भी पटपटा कर ,फट जाता है। ।



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