बन्धन
बन्धन
तरुवर भी बाँधते हैं
घर भी बाँधता है
वह हरसिंगार के फूल
उनकी ख़ुशबू बाँधती हैं।
हरी घास की ठंडक बाँधती है
वह तोरी की बेल
उसके पीले पीले फूल
चौड़े चौड़े पत्ते सब बाँधते हैं।
बारिश से भीगी
मिट्टी की सोंधी सुगंध
भूले बिसरे अहसास जगाती
मन को बाँध लेती है
चमेली के फूलों की ख़ुशबू
गुलाब की खिली टहनी
वह पीला कनेर और
वे नीम की नयी कोपलें
सब बाँध लेते हैं,
पक्षी चहचहाते हैं
आकाश में सूर्य किरणें
बिखर रही हैं
यह रंग बिरंगा आकाश
यह चिड़ियों का संगीत
सब कुछ तो है
मैं अकेली कहाँ हूँ।
परिवेश भी संगति बनाता है,
सब बन्धनों से निर्मुक्त
कहाँ हो पाते हैं,
मैं अकेली कहाँ हूँ।