बिदाई लड़कों की भी...
बिदाई लड़कों की भी...
बिदाई लड़कों की भी करनी पड़ती है...
लड़कियों की बिदाई सदियों से चली आई है
लड़कों की बिदाई इक्कीसवीं सदी में आई है ,
दोनों को बाहर पढ़ने जाना है
विदा लड़के को भी होना है ,
लड़कियों को परायों को सौंपना
लड़कों को छाती से चिपकाकर रखना ,
ये इंसाफ तो हरगिज़ नहीं था
प्यार तो कतई नहीं था ,
ये तो दिल के टुकड़े हैं
माॅं के आंचल में सिकुड़े हैं ,
दोनों को उन्मुक्त आकाश चाहिए
माॅं का बराबर प्यार चाहिए ,
लड़कियां संभल भी जाती हैं
लड़कियां संभाल भी लेती हैं ,
लड़के संबल ढूंढ़ते हैं
लड़के संबल बनते हैं ,
दोनों की सोच अलग है
फिर भी वो नहीं विलग हैं ,
अब ज़माना बदल गया है
काफी कुछ अलग नया है ,
दोनों की बिदाई में ज़रा सा अंतर है
इसको समझना एक गूढ़ मंतर है ,
लड़कियां रोकर हल्की हो जाती हैं
लड़के सह कर भारी हो जाते हैं ,
लड़कियां हल्की होकर मुलायम हो जाती हैं
लड़के भारी होकर रूखे हो जाते हैं ,
बिदाई दोनों की होनी है
जुदाई दोनों को सहनी है ,
बिदाई सिर्फ लड़कियों की नहीं करनी पड़ती है
बिदाई लड़कों की भी करनी पड़ती है ।
