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Mamta Singh Devaa

Children Stories Others

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Mamta Singh Devaa

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बिदाई लड़कों की भी...

बिदाई लड़कों की भी...

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बिदाई लड़कों की भी करनी पड़ती है...


लड़कियों की बिदाई सदियों से चली आई है

लड़कों की बिदाई इक्कीसवीं सदी में आई है ,

दोनों को बाहर पढ़ने जाना है 

विदा लड़के को भी होना है ,

लड़कियों को परायों को सौंपना 

लड़कों को छाती से चिपकाकर रखना ,

ये इंसाफ तो हरगिज़ नहीं था

प्यार तो कतई नहीं था ,

ये तो दिल के टुकड़े हैं

माॅं के आंचल में सिकुड़े हैं ,

दोनों को उन्मुक्त आकाश चाहिए

माॅं का बराबर प्यार चाहिए ,

लड़कियां संभल भी जाती हैं

लड़कियां संभाल भी लेती हैं ,

लड़के संबल ढूंढ़ते हैं 

लड़के संबल बनते हैं ,

दोनों की सोच अलग है

फिर भी वो नहीं विलग हैं ,

अब ज़माना बदल गया है

काफी कुछ अलग नया है ,

दोनों की बिदाई में ज़रा सा अंतर है

इसको समझना एक गूढ़ मंतर है ,

लड़कियां रोकर हल्की हो जाती हैं

लड़के सह कर भारी हो जाते हैं ,

लड़कियां हल्की होकर मुलायम हो जाती हैं

लड़के भारी होकर रूखे हो जाते हैं ,

बिदाई दोनों की होनी है

जुदाई दोनों को सहनी है ,

बिदाई सिर्फ लड़कियों की नहीं करनी पड़ती है 

बिदाई लड़कों की भी करनी पड़ती है ।



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