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कवि काव्यांश " यथार्थ "

Children Stories Fantasy Inspirational

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कवि काव्यांश " यथार्थ "

Children Stories Fantasy Inspirational

भूख से बिलखती गरीबों की दुनिया

भूख से बिलखती गरीबों की दुनिया

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आज फिर चूल्हा पड़ गया ठंडा,

राख से ढक गई आग,

खाने को अनाज नहीं,

पीने को पानी नहीं,

भूख से बिलखते बच्चे,

रोटी की आस में तड़पते..


मां की सूनी आंखों में,

सपने भी प्यासे है।

हाथों की लकीरों में,

बस दर्द की सौगातें हैं, 

दहलीज पे बिखरी है,

उम्मीदों की बातें,


फिर भी जिंदा है आस,

फिर नई एक सुबह आएगी,

तभी तो ये बेरहम,

रात फिर ढल पाएगी...


माँ की आँखों में हैं इंतज़ार,

बापू का भी हौसला बेजार,

अब तो सूखी रोटी भी

जैसे नसीब में नहीं, 

भूख के सिवाय अब कुछ

ओर आंखों में सपने ही नहीं।


फिर देखों भूख ने बनाया 

कैसा ये हाल हैं।

चारों ओर बिलखते बच्चे

मातम में डूबा संसार है।


सूनी गलियों में निकला सूरज,

शुरू हुआ मेहनत का नया सफर,

हाथों में पड़ गये छाले जो,

पेट खाली, भूख से बेख़बर।


ईंट-गारा, बोझ उठाना,

धूप में झुलसी देह,

पसीने के मोती गिरे,

फिर भी रोटी रही अनदेख।


तालाबों का गंदा पानी,

समंदर सा मीठा लगे,

पेट की ज्वाला बुझाने,

ज़हर भी जैसे जीवन लगे।


रात को तारे भी ताने कसें,

चांदा भी हँसता रहे,

खाली पेट करवटें बदलें,

और नींद भी कोसों दूर रहे।


कोई किरण उम्मीद की,

कोई साया ढबे को,

कहाँ मिलेगा, किस ओर जाएँ,

कौन सुनेगा बेसहाराओं को?


हर रोज़ सवालों की आँधी चलें

हर रोज़ तकलीफों की चाल सा,

फिर भी जीवन ठहरता नहीं,

बस, चलता चला जा रहा बेहाल सा।




  


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