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Archana kochar Sugandha

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Archana kochar Sugandha

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भीड़ लगी है मधुशाला में

भीड़ लगी है मधुशाला में

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जान से ज्यादा ज़हन में बसता मधुशाला है 

मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और सजदे में

झुकता शिवाला है 

दो घूँट पिला दे साथिया

तेरे दर पर झूमता-गाता यह मतवाला है। 


जाम छलकते गिलासों में, चीयर्स-चीयर्स की

माला है 

दो घूँटों से ही जलती, ह्रदय जोत की ज्वाला है

मस्त-मलंग अघोरी पड़े हैं तेरे दर पर 

दरकते परिवारों में, छूटती बच्चों की

पाठशाला है।


धूप-दीप और नैवेद्य से पूजा मधुशाला है 

तन-मन और धन सब अर्पित बड़ी ही

कमसिन देव हाला है 

ओम भूर भुवा स्वाहा में जिंदगी की

डाल दी पूर्णाहुति 

बड़ा ही काफिर मधुशाला का मकड़जाला है।


आज बंद सारे भगवान के द्वारे हैं 

महंगी कीमतों में जोर-शोर से खुले इसके

चौबारे है

बड़े दिनों के बाद मधुशाला के पुजारियों का

मन-तन डोला है

लोक डॉऊन का दंश तो सिर्फ मधुशाला ने

झेला है।


एक नज़र जरा आवाम पर डालो 

कोरोना काल के अंजाम पर डालो 

भीड़ जुटी हैं मधुशाला में

गुजारिशों पर की है जो मेहरबानियाँ

उनके इंतज़ाम पर डालो।




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