बेटियां
बेटियां


प्यारी सी बेटियों के क्यूँ अपने घर नहीं है होते,
लक्ष्मी स्वरुपा विद्या दायिनी के अपने घर नहीं है होते ।
चाहती है वो गगन को छूना ख्वाहिश रखती है
ख़्वाहिशों को नापने के उसके पास पर नही है होते।
जिंदगी का ताना बाना बुनती है छोटे छोटे ख्वाबों में,
अधूरे ही रह जाते है ख्वाब उनके सहर नहीं है होते ।
अनुशासन,नियम,कानून कैसी है बेरंग जिदंगी,
इन खुबसूरत तितलियों के पास पर नही है होते।
देखती है आगे बढने के सपने वो बेटियाँ रात दिन,
सपनों की दुनियाँ के सपनें अग्रसर नहीं है होते ।
गमों की दुनियाँ में सिमट कर रह जाती हैं वो ,
पराया धन मानकर अपने भी उसके उम्र भर नही है होते।
नादान सी अधखिली कलियाँ चाहती है खिलना,
खिलने से पहले कुचल दी जाती बेटियों के दर नहीं है होते ।।