बचपन
बचपन
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बचपन तुम जीवन के भोर
सरस् सुहावन भरे इंंजोर
नव किसलय से चिकने कोमल
ह्रदय मुकुल से रिसता परिमल
आस हुलास भरे हर पीर
बचपन तुम जीवन के भोर।।
कभी बादलों के पीछे तुम
उजले खरहे के पीछे तुम
दौड़े खिलखिल करते शोर
बचपन तुम जीवन के भोर।।
कभी शरद के खुले गगन में
उड़ा सजीली लाल पतंगे
देखा तुम को थामे डोर
बचपन तुम जीवन के भोर।।
जब जीवन के मेले में
खोकर दूर अकेले में
याद करूंगा मैं पिछले दिन
हो जाऊँगा भाव विभोर
बचपन तुम जीवन के भोर।।