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Suresh Koundal 'Shreyas'

Others

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Suresh Koundal 'Shreyas'

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बचपन की यादें

बचपन की यादें

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घर की अलमारी के अंदर,

मिली एक पुरानी फोटो एलबम

लगा जो पलटने मैं उसके पन्ने,

घिर आया धुंधली सी यादों का समंदर,

एक छोटा सा घर गांव के अंदर ,

भरा पूरा संयुक्त परिवार जैसे हो एक मंदिर

दादा दादी, चाचा चाची, बहनें और भाई 

चार कमरों का घर, एक छोटी सी रसोई 

मिल बैठ पढ़ना, खेलना और खाना

दादा संग खेतों में घूमने जाना 

बैठ अंगीठी के पास छलियाँ भुनाना 


गर्म पिठ्ठू, समुद्र टापू ,और गिट्टियां 

छुपन छुपाई, कंचे, डंडे और गिल्लियां

बच्चों की खेलों से चहकतीं थीं गलियां 

बैठ सुनते थे दादी से कहानियाँ और किस्से

बेशक कच्चे थे घर, पर सच्चे थे रिश्ते 

न कोई फिकर थी, बड़ा सुंदर था ज़माना 

मिलजुल कर सबका पढ़ना और पढ़ाना 

रोज़ बस्ता उठा कर, स्कूल जाना

स्लेटों को घिसना, तख्तियों को धोना 

मुलतानी मिट्टी मलना, और मिलकर सुखाना 

खुद कलमें घड़ना, खुद रोशनाइयाँ बनाना 


खाने पीने की न थी कोई पाबंदी 

भरी रहती थी,

दूध, दही और घी की हांडी 

गाँव की बावड़ी से पानी भर के लाना 

पीपल की डालों पर पींगे झुलाना

गुड्डे और गुड़ियों के मेले लगाना 

खुले खेतों में पतंगें भिड़ाना 

दादा के हुक्के से गुड़गुड़ाना 

छोटी छोटी गलतियों पर डाँट खाना 

कितना प्यारा था वो बचपन,

हर कोई आसक्त था 

चाहे सुविधाएं कम थीं 

हँसने खिलखिलाने के लिए "वक्त " था ।।


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