Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Dr. Anu Somayajula

Children Stories

4.7  

Dr. Anu Somayajula

Children Stories

बचपन की दुनिया ढूंढ लाएं

बचपन की दुनिया ढूंढ लाएं

1 min
488


प्रिय डायरी,

याद करो जब हम

घुटनों – घुटनों चलते – चलते

किसी कोने में पड़ी

सुई के नोक सी छोटी

कंकड़ी ढूंढ लेते थे,


अम्मां की नज़रों से बच कर

मुंह में ठूंस लेते थे,

पकड़े जाने पर

एक मासूम पोपली

हंसी अम्मा को

सौगात में देते थे।


याद करो वो

गर्मी की दुपहरियां-

गुड्डे–गुड़ियों ब्याह रचाना,

बंद दरवाज़ा धीरे से खोल

उतर आना मैदान में-

गिल्ली डंडा खेलने को


(छुट्टियों में कोई घर में

रहता है भला)

सांझ ढले-

घर जाकर झिड़की खाना,

फिर भी खिखियाना।


बारिश की गीली मिट्टी में

लंबी नुकीली लोहे की

कील घुपाना,

होड़ लगाना कौन

कितने दूर फेंकता है

झरते पानी में


आंगन में भींगना,

मेंढ़कों के साथ फुदकना

आज यह हाल है कि

मेंढ़क सामने आते ही

हम फुदकने लगते हैं

वह ताकता रहता है’।


कैसे भूलेंगी सर्दियों की रातें

सिगड़ी के चारों ओर बैठना,

तवे पर-

रोटी सिंकती,

नीचे आलू – शकरकंदी भुनती;

अब खाने में वो आंच कहां

वो स्वाद कहां !


अब हम बड़े हो गए हैं

सभ्य हो गए हैं,

क्रिकेट खेल कर आया बच्चा

धूल सने कपड़ों में पसर जाए– सही

मिट्टी में हाथ सने– ग़लत

चूहे जैसे दांतों से

कुरकुरे कतरे– सही

कुरमुरे खाए– ग़लत


स्विमिंगपूल में डुबकी लें– सही

बारिश में भीगें– ग़लत

अपनी जड़ें खोदकर उड़ना चाहें– सही

जड़ों से जुड़ना चाहें– ग़लत


आओ, अपने अंदर के

कोलंबस को जगाएं

बचपन की दुनिया ढूंढ लाएं !


Rate this content
Log in