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सोनी गुप्ता

Others

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सोनी गुप्ता

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बचपन की दोस्ती

बचपन की दोस्ती

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उजालों में भी कोई अपना यहाँ अब दिखता नहीं, 

हमारी हर बातों को कोई यहाँ अब समझता नहीं।


आंखों में सबके ये कैसा स्वार्थ का पर्दा छा गया है, 

बचपन के दोस्तों की तरह अब कोई बोलता नहीं।


ख्वाहिशें और फरमाइशें सब दब सी गई हैं हमारी, 

अब वो बचपन की दोस्ती का सूरज कहीं उगता नहीं ।


संघर्ष ,आंदोलन और आक्रोश सबके मन में भर गया , 

इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में अब आराम मिलता नहीं I


लग रहा मैं सपनों की इस भीड़ में खो गया हूँ कहीं, 

औरों से क्या गिला, अपनों का बचपन भी अब दिखता नहीं ।


दिल बज्र हो गया सबका और एहसास दब से गए, 

बचपन के दोस्त के सिवा अब कोई हमें यहाँ समझता नहीं।


रह गए सिर्फ कागजों पर हमारे रिश्तों के सभी जज्बात, 

बचपन की दोस्ती के बारे में अब कोई पूछता ही नहीं ।



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