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Amita Mishra

Children Stories Children

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Amita Mishra

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बचपन का खेल

बचपन का खेल

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"मैं बच्चा बन जाऊं"

माँ मुझको तू बच्चा बना दे फिर मैं पढ़ने जाऊं,

आकर खेलूँ आंगन में तेरे आँचल में छिप जाऊं,

भाई बहन संग करूँ शरारत पिटाई भी खाऊ,

तेरे आंसू पोंछकर फिर मैं चुप हो जाऊं,


अटकन बटकन, पोशम्पा का खेल खेलकर आऊं,

घोड़ा बादाम छाही और रेलगाड़ी का मैं इंजन बन जाऊं

अब तो मुझको कोई भी खेल नहीं भाता है 

माँ मुझको फिर वही पुराने खेल सिखला दे

मैं बच्चा बन जाऊं......


कितने शौक निराले थे तब बेमतलब की बातों का,

हकीकत में सपने लगते थे बेबुनियादी बातों का,

माँ तू फिर सपनों की दुनिया दिला दे, 

मैं बच्चा बन जाऊं ......


घर आते ही मम्मी-मम्मी करके मैं चिल्लाऊं,

भागकर रसोई में एक साथ सब चट कर जाऊं,

चाय, नाश्ता, सब कुछ तेरे हाथों का ही भाता है,

माँ मुझको फिर वही स्वाद चटा दे भागे-भागे आऊं,

मैं बच्चा बन जाऊं.....


जब बच्चे थे देखा करते थे बड़े होने के सपने,

सब कुछ अपना था, लगते थे सब अपने,

हर रात दीवाली हर दिन बाल दिवस सा लगता था,

माँ मुझको मेरी वही पुरानी ड्रेस दिला दे,

मैं बच्चा बन जाऊं.....


चंदा मामा की कहानी, लोरी सुना दे वही पुरानी,

गर्मी की छुट्टी में मैं फिर दादी-नानी के घर जाऊं,

आंगन में सो कर देखूँ मैं तारे, ठंडी में रजाई ओढ़ा दे,

माँ मुझको फिर से बचपन वाले दिन लौटा दे,

मैं बच्चा बन जाऊं......


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