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Rajkumar Jain rajan

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Rajkumar Jain rajan

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बाढ़

बाढ़

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बाढ़

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टूटी हुई खिड़कियां

हवा की हर आहट पर

शोर मचाती है

बेशर्मी के साथ खड़ा नँगा दरवाजा

मेरे अभावों का उड़ाता है मज़ाक


अभावों की रेत और

गरीबी की मार

कभी भी घायल कर सकती है मुझे

क्योंकि प्रकृति ने भी

मेरे साथ धोखा किया है

दुःख के झंझावात में

जलती रहती है अंतड़ियां

परत दर परत

अंधेरे को घूरती है भूख


उस काली रात 

आये तूफान व बाढ़ ने

उजाड़ दी मेरी जिंदगी की झोंपड़ी

और फैला दी है

मेरे आस- पास

आँसुओं की बाढ़

अब मैं मजबूर हूँ डूबने को


मन की अथाह पीड़ा को सहते

घने अंधेरे के बाद

सुबह सूरज की रौशनी

जीने का हौसला फिर बढ़ा देती है


एक नन्हीं चिड़िया

अपनी चोंच में छोटा-सा दाना दबाए

आंगन में फुदकती

सुबह की शुभकामना देती है

डूबते हताश मन को

एक नया हौसला मिलता है

जिजीविषा फिर जाग उठती है।

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