बाप की पीड़ा....
बाप की पीड़ा....
वक्त और हालात कैसे बदलते हैं
उम्र के इस पड़ाव पर अब हम
अपने ही बच्चों को बोझ लगते हैं
ऊंगली पकड़कर चलते थे जो कल तक
आज वही हमे घर से बेदखल करते हैं
परवरिश मे जिसकी रात दिन एक किया
आज उसको हम अपने ही घर मे खेलते हैं
जाने क्यों अपनो को ही हम अब
उम्र के इस पड़ाव पर बोझ लगते हैं
जो भी था मेरे पास सब तेरे नाम कर दिया
जमीन जायदाद और आर्शीवाद हर पल दिया
बदले मे तुने मुझको
वृद्धाश्रम का रस्ता दिखा दिया
बाप अब बेसाहरा हो गया
हाथ छोड़ तू दूर किनारा हो गया
वक्त इक दिन तेरा भी आएगा
घूमेगा समय का पहिया और
जितनी इज्जत दी है तुने मुझको
तू भी अपनी औलाद से वही पाएगा