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संजय असवाल "नूतन"

Others Children

4.5  

संजय असवाल "नूतन"

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बाल मन की कविता

बाल मन की कविता

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*चल मेरे घोड़े*


चल मेरे घोड़े टुक टुक टुक

यहां वहां तू अब मत रुक।

धीरे धीरे अब बढ़ता चल

मस्ती में अपने चलता चल।।

सबको अब तू सैर करा 

नदिया घाटी पार करा।

शान से अपने कदम बढ़ा

सरपट सरपट दौड़ लगा।


*रंग बिरंगी फूल*


मेरी बगिया में खिले हैं 

सुंदर सुंदर प्यारे फूल

लाल गुलाबी नीले पीले

खूब लुभाते हमको फूल।

खुशबु देते दूर दूर तक

घर आंगन महकाते हैं

रंग बिरंगी इतने सुंदर

भंवरे भी ललचाते हैं।

सूरज संग खिल जाते हैं 

मन को कितने भाते हैं 

बरखा की बूंदों में देखो 

लक दक हो झुक जाते हैं।


*चलो दीपावली मनाते हैं*


थाल सजा कर रंगो से हम

चलो सुंदर रंगोली सजाते हैं 

घर के कोने कोने में हम

चलो एक दीप जलाते हैं ।

जगमग हो जाए ये धरा अपनी

अंधियारा चलो मिटाते हैं

खुशियां बिख

रे हर चेहरे पर

चलो मिलकर दीपावली मनाते हैं।

बम पटाखे रंगीन फुलझडियां

मिठाइयां चलो सब में बांटते हैं

खुशियों का त्यौहार दीपावली 

चलो मिलकर हम मनाते हैं।

द्वेष भाव क्या तेरा मेरा

नफरत दिलों से हटाते हैं 

इस शुभ दीपावली मिलकर हम

चलो सौगंध राम जी की खाते हैं 

चलो मिलकर दीपावली मनाते हैं।


*सारिक चला देखने मेला*


सारिक चला देखने मेला

हाथ में था उसके एक थैला।

थैले में थे उसके रुपए चार

थैला गुम गया बीच बाजार।

खाली हाथ देख वो घबराया

भीड़ में सर उसका चकराया।

मेले में थी बस रेलम पेल

भीड़ में हो रही ठेलम ठेल ।

चाट पकौड़ी पर दिल ललचाया 

गलती करके वो पछताया

लौटा घर को वो खाली हाथ 

मां देख रही थीं उसकी बाट।


*बुलबुल प्यारी*

फुदक फुदक कर बुलबुल आती

मीठा सबको गीत सुनाती 

इधर उधर वो सेंध लगाती

फुर्र से छत पर चढ़ जाती।


मुन्नी उसको पास बुलाए

ढेर आवाज उसे लगाए

बुलबुल दाना चुगने आए

मुन्नी देख उसे मुस्काए।


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