बादल : याद
बादल : याद
चलो फिर से एक बार
बहार को बुला लाते है
बादलों के साथ
करतें है एक बार फिर मन की बात
भीगे से है दिन और भीगे से मन
भीगा भीगा है घर का भी आंगन
इन बरसातों में क्यों ना भीगे
मैं और तुम भी
मेरे तुम्हारे बीच की उलझनें
दूरियां, कड़वाहट,
आओ बह जाने दे बरसते पानी के साथ
चलो फिर बुलाते है बहार को
बादलों के साथ
जो ज़ुबान की गर्मी से तपा था रिश्ता
उसे बरसात की ठंडक से थोड़ा नरमा ले
हम तुम भी बरसात को थोड़ा
आज़मा ले
क्यों ना फिर से हो जाओ तुम लड़के से
मैं हो जाऊं पगली फिर तुम्हारे प्यार में
मन को भी भीगा लें तन के साथ
चलो फिर से बुलाते है बहार को
बादलों के साथ
आओ एक बार फिर आंगन को सजा ले
उन्ही मोगरे के फूलों से
जिनकी खुशबू तुम्हे बहकाती थी
उन्ही सिंकते भुट्टों के साथ
फिर सेंके प्रेम की बात
चले फिर किसी लंबे से भीगे रास्ते पे
ठंडी हवा और पानी की फुहारों में
फिर से एक बार बहार को बुला लाते हैं
बादलों के साथ